Saturday, 31 March 2012

पत्थर जब


पत्थर   जब   फलदार  शजर  पर  मारेगा |
फल   ही  देगा   और   नहीं  तो  क्या  देगा ||

नामुमकिन को मुमकिन करना है आसान |
कुछ करने को  दिल  में  अगर  तू  ठानेगा ||

सब को है  मालूम  करोगे  जब  भी  इश्क़ |
सारा   ही   सुख –चैन   तुम्हारा    लेलेगा ||

कैसे -कैसे   आप   कमा   कर    लाते  हैं |
कल  को  बच्चा  बात  सभी   ये  पूछेगा ||

ढीला – ढाला जंग  में होगा  जो शामिल |
हर  कोई  उस  पे  ही   निशाना  साधेगा ||

कच्चा फल है सब्र करो पक जाने  तक |
इक दिन इसका स्वाद ज़माना मानेगा ||

‘सैनी’ख़ाली हाथ चला  है  मंज़िल  पर |
उससे अब क्या  कोई लुटेरा  छीनेगा  ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी    

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