Wednesday, 28 March 2012

आँखों से


मसल: दिल का  एक पुराना जब आ  उलझा  आँखों  से |
क़तरा–क़तरा एक समुंदर बह - बह निकला आँखों  से ||

लगती  थी वो  हमें हसीना बिलकुल अबला आँखों  से |
जाने क्या  उसको  सूझा वो कर गई हमला आँखों  से ||

ख़त  वो  मेरे  पढ़  लेता  है बिलकुल नीम  अँधेरे  में |
पर  मेरे  आगे  हो  जाता  इकदम  दुबला  आँखों  से ||

पैमाना  लेकर    ख़ाली   हम  बैठे  थे  भिखमंगे  से |
जब  औरों  को ख़ूब पिलाई उसने मदिरा आँखों से ||

बरसों  से  जो  देख  रहा था ‘सैनी’क़ाबिल होने का |
आँधी एसी वक़्त की आई सपना बिखरा आँखों से ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी  

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