मसल: दिल का एक पुराना जब आ उलझा आँखों से |
क़तरा–क़तरा एक समुंदर बह - बह निकला आँखों से ||
लगती थी वो हमें हसीना बिलकुल अबला आँखों से |
जाने क्या उसको सूझा वो कर गई हमला आँखों से ||
ख़त वो मेरे पढ़ लेता है बिलकुल नीम अँधेरे में |
पर मेरे आगे हो जाता इकदम दुबला आँखों से ||
पैमाना लेकर ख़ाली हम बैठे थे भिखमंगे से |
जब औरों को ख़ूब पिलाई उसने मदिरा आँखों से ||
बरसों से जो देख रहा था ‘सैनी’क़ाबिल होने का |
आँधी एसी वक़्त की आई सपना बिखरा आँखों से ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
No comments:
Post a Comment