बेवफ़ा के पास जा कर क्या करूँ |
और अब दिल को दुखा कर क्या करूँ ||
आँख पर पट्टी जो बांधे चल रहा |
रास्ता उसको बता कर क्या करूँ ||
लोग अपने –अपने मन की कर रहे |
ग़लतियां उनकी गिना कर क्या करूँ ||
भूल बैठा है जो मेरा नाम तक |
बज़्म में उसको बुला कर क्या करूँ ||
भूख से बेहाल बच्चा रो रहा |
अब उसे लोरी सुना कर क्या करूँ ||
है नहीं फ़ुर्सत उन्हें तो आजकल |
महफ़िलें फिर मैं सजा कर क्या करूँ ||
रूह तो दिलबर से मिलने जा चुकी |
फूल मुर्दे पर चढ़ा कर क्या करूँ ||
बेसुरों के बीच में जब फंस गया |
मैं ही सुर में गुनगुना कर क्या करूँ ||
कुछ तवज़्जोह आप जब देते नहीं |
बात को मैं भी बढ़ा कर क्या करूँ ||
ज़हर मिल कर बिक रहा हर चीज़ में |
अब अलग से ज़हर खा कर क्या करूँ ||
देख कर नादान की नादानियां |
बेवजह मैं तिलमिला कर क्या करूँ ||
ज़िंदगी भर तो नहीं मै को चखा |
आज ही मुंह से लगा कर क्या करूँ ||
भैंस नाचेगी नहीं ‘सैनी’ तेरी |
बीन फिर यूँ ही बजा कर क्या करूँ ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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