Tuesday, 20 March 2012

क्या करूँ |


बेवफ़ा  के  पास   जा  कर  क्या  करूँ |
और अब दिल को दुखा कर क्या करूँ ||

आँख  पर  पट्टी  जो  बांधे  चल  रहा |
रास्ता  उसको  बता   कर  क्या  करूँ ||

लोग अपने –अपने मन की  कर  रहे |
ग़लतियां उनकी गिना कर क्या करूँ || 

भूल   बैठा   है   जो  मेरा  नाम  तक |
बज़्म में उसको बुला कर क्या  करूँ || 

भूख    से    बेहाल   बच्चा    रो   रहा |
अब उसे लोरी  सुना  कर  क्या  करूँ || 

है   नहीं   फ़ुर्सत  उन्हें  तो  आजकल |
महफ़िलें फिर मैं सजा कर क्या करूँ || 

रूह तो दिलबर  से  मिलने  जा  चुकी |
फूल   मुर्दे   पर  चढ़ा  कर  क्या  करूँ || 

बेसुरों   के   बीच   में  जब  फंस   गया |
मैं ही सुर में  गुनगुना  कर  क्या  करूँ || 

कुछ तवज़्जोह  आप  जब   देते   नहीं |
बात  को  मैं  भी  बढ़ा  कर  क्या  करूँ || 

ज़हर मिल कर  बिक रहा हर चीज़ में |
अब अलग से ज़हर खा कर क्या करूँ ||  

देख    कर   नादान   की    नादानियां |
बेवजह मैं  तिलमिला कर  क्या करूँ ||  

ज़िंदगी  भर   तो  नहीं  मै   को चखा |
आज ही  मुंह से लगा कर क्या  करूँ ||  

भैंस     नाचेगी    नहीं   ‘सैनी’   तेरी |
बीन फिर यूँ ही बजा कर क्या  करूँ ||  

डा० सुरेन्द्र  सैनी  

  

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