Friday, 7 September 2012

हुस्न का नशा


क्या उठा उनके दिल में फ़ुतूर  |
मुझ   से   रहने   लगे  दूर -दूर ||

आदमी   मैं    बुरा   ही   सहीअ |
काम  आऊँगा इक दिन ज़ुरूर  ||

बैठ बज़्म -ए -अदब में तू रोज़ |
आ ही जाएगा इक दिन शऊर ||

सच्ची सूरत जो कर दी  बयाँ |
आइने  को   किया   चूर -चूर ||

मुझ से शायद  कोई  काम  है |
आज  घर   मेरे   आये  हुजूर ||

 दौलत -ए -हुस्न का है  नशा |
आ  गया  थोड़ा उन में  ग़ुरूर ||

आप  ‘सैनी  ’की  ग़ज़लें पढ़ें |
कईं  दिनों  तक रहेगा सुरूर ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी 

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