लुभाओ मत मुझे यूँ फ़ासले से ही निगाहों से |
कराओ मुझको भी वाक़िफ़ क़रीब आ कर अदाओं से ||
गुनाहों से बचा कर रक्खी मैंने ज़िन्दगी अपनी |
तुम्हें छू कर लिपटना चाहता हूँ अब गुनाहों से ||
छुपा कर ख़ुद को ले जाते हो मुझसे होशियारी से |
मगर ख़ुशबू बचा पाते नहीं हो तुम हवाओं से ||
जफ़ाएं हुस्न का होती हैं गहना बात सच्ची है |
उसे लेना या देना कुछ नहीं होता वफ़ाओं से ||
समझती हो अगर तुम राजरानी हुस्न की ख़ुद को |
तो हम भी इश्क के कमतर नहीं हैं बादशाहों ||
जवानी में कुलाँचे भर रहा जब इश्क़ होता है |
हमेशा ख़ार खाता है बुजुर्गों की सलाहों से ||
कभी देखा नहीं ‘सैनी' ने कोई इश्क़ का जल्वा |
नहीं फ़ुर्सत कभी मिलती है उसको पारसाओं से ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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