Thursday, 20 September 2012

जब तुम्हे चाहा


जब तुम्हे चाहा तुम मिले ही नहीं |
अब मिले भी तो हम रहे ही  नहीं ||

तीन  पल   की    हयात   पाई  थी |
क्या करूँ तुम तो बस रुके ही नहीं ||

उन  गुनाहों   का   ख़ाब  क्या  देखें |
हमने जीवन में जो किये  ही  नहीं ||

हारना  क्या  था जीतना क्या  था |
फ़ैसले  प्यार   में   हुए   ही  नहीं ||

आग  क्या  है  न  मैंने  जाना  है |
हाथ   तेरे  कभी   छुए   ही  नहीं ||

पर्चियां  फाड़ता  रहा   लिख  कर |
ख़त के जुमले कभी बने ही नहीं ||

तुम थे बगिया में फूल खिलते थे |
तुम गए फूल भी खिले  ही  नहीं ||

साथ चलना था  मंज़िलों पे हमें |
ये  अकेले   क़दम  बढे  ही नहीं ||

तेरे  बारे  में  जब  भी  सोचा  है |
जाम‘सैनी’ ने तब पिए ही नहीं ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी   


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