जब तुम्हे चाहा तुम मिले ही नहीं |
अब मिले भी तो हम रहे ही नहीं ||
तीन पल की हयात पाई थी |
क्या करूँ तुम तो बस रुके ही नहीं ||
उन गुनाहों का ख़ाब क्या देखें |
हमने जीवन में जो किये ही नहीं ||
हारना क्या था जीतना क्या था |
फ़ैसले प्यार में हुए ही नहीं ||
आग क्या है न मैंने जाना है |
हाथ तेरे कभी छुए ही नहीं ||
पर्चियां फाड़ता रहा लिख कर |
ख़त के जुमले कभी बने ही नहीं ||
तुम थे बगिया में फूल खिलते थे |
तुम गए फूल भी खिले ही नहीं ||
साथ चलना था मंज़िलों पे हमें |
ये अकेले क़दम बढे ही नहीं ||
तेरे बारे में जब भी सोचा है |
जाम‘सैनी’ ने तब पिए ही नहीं ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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