दोस्ती में ये कैसा मक़ाम आ गया |
दुश्मनों में हमारा भी नाम आ गया ||
एसा सर पर चढ़ा है जनून -ए -जिहाद |
आज सड़कों पे सारा अवाम आ गया ||
वो हुए थे ख़फ़ा मुदत्तें हो गयीं |
ईद पर फिर भी उनका सलाम आ गया ||
उनको देखा तो नज़रें ये कहने लगी |
हुस्न का आज सारा निजाम आ गया ||
थक गयी दौडती भागती ज़िंदगी |
ज़िंदगी के सफ़र का क़याम आ गया ||
वो अयादत कोआये न आये तो क्या |
पास मेरे महल्ला तमाम आ गया ||
बच के रहना हसीनो ज़रा शहर में |
एक पागल सा आशिक़ अनाम आ गया ||
तेरी महफ़िल में तलछट ही मिलती रही |
क्या करिश्मा हुआ आज जाम आ गया ||
जानता था यहाँ लोग हैं बेशऊर |
फिर भी ‘सैनी’ तू पढने कलाम आ गया ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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