Thursday, 2 August 2012

मक़ाम आ गया


दोस्ती  में  ये  कैसा  मक़ाम  आ  गया |
दुश्मनों  में  हमारा भी  नाम आ  गया ||

एसा सर पर चढ़ा है  जनून -ए  -जिहाद |
आज सड़कों पे सारा  अवाम  आ  गया ||

वो    हुए    थे    ख़फ़ा   मुदत्तें   हो   गयीं |
ईद पर फिर भी उनका सलाम आ गया ||

उनको  देखा  तो  नज़रें ये  कहने  लगी |
हुस्न का आज सारा निजाम  आ  गया ||

थक    गयी    दौडती   भागती   ज़िंदगी |
ज़िंदगी के सफ़र का  क़याम  आ  गया ||

वो अयादत कोआये  न  आये  तो  क्या |
पास   मेरे   महल्ला  तमाम   आ  गया ||

बच   के   रहना   हसीनो  ज़रा  शहर  में |
एक पागल सा आशिक़ अनाम आ गया ||

तेरी  महफ़िल में तलछट ही मिलती रही |
क्या  करिश्मा  हुआ आज जाम  आ गया ||

जानता    था    यहाँ    लोग    हैं     बेशऊर | 
फिर  भी  ‘सैनी’ तू  पढने कलाम आ गया ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी 

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