आप बन कर चले जब मेरे हमसफ़र |
लो शुरू हो गया चांदनी का सफ़र ||
मेरी आँखों में हैं इक अनोखी चमक |
साथ है जो मेरे आप सा हमसफ़र ||
ये ज़रूरी नहीं आज ही तू मिले |
राह देखूंगा मैं तो तेरी उम्र भर ||
वक़्त थोड़ा सा मेरे भी लिए तो निकाल |
वक़्त पर काम कर वक़्त पर प्यार कर ||
पार करले ये काँटों भरा रास्ता |
बाद इसके है फूलों भरी वो डगर ||
इश्क़ में मुब्तिला जब से तेरे हुआ |
दुन्यादारी में बिल्कुल हुआ मैं सिफ़र ||
तुझसे रुसवा हुआ तो ये हालत हुई |
इस तरफ़ है कुआ तो है खाई उधर ||
क्यूँ ग़रूर इतना है ये बता तो सही |
रिश्ते नाते सभी रख दिये ताक़ पर ||
है बिना प्यार के बोझ ये ज़िंदगी |
जिसको ढोता फिरे ‘सैनी’शाम-ओ-सहर ||
डा ० सुरेन्द्र सैनी
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