Thursday, 23 August 2012

आग का दरिया


दरिया  हूँ  मैं  इक  आग  का  जो  कि मुद्दतों से बुझा नहीं |
जो समझ सके मेरे दर्द को कोई आज तक तो मिला नहीं ||

वो  गुनाह  करके  बचे  रहे मुझे बिन किये ही सज़ा मिली |
वो  अजीब  सा  इजलास  था  जहाँ  मुद्दई  को  सुना  नहीं ||  

किया एक तरफ़ा ही फ़ैसला मुझे  छोड़  कर  वो  चले  गए |
क्यूँ  ख़फ़ा हुए क्या ख़ता हुई मुझे आज तक भी पता नहीं ||

ग़म-ए-आशिक़ी ने मिटा दिया जो वजूद कुछ था बचा हुआ |
मैं वो सूखता हुआ पेड़  हूँ   किसी  ने  भी  पानी  दिया  नहीं || 

ये चराग़  कैसे जलाऊं मैं नहीं  जानता मैं  ये इल्म-ओ-फ़न |
मैं   तो  तीरगी  में  पला बड़ा  मुझे   रोशनी  का   पता नहीं ||

वो मुझे लिखें मैं उन्हें लिखूं कभी ख़त लिखा था ये सोच कर |  
मेरी  उम्र  सारी  निकल  गई  वो  जवाब  उसने  दिया  नहीं || 

जो मिला उसी में  मैं  ख़ुश  रहा  मैं  ख़ुदा  का  शुक्रगुज़ार हूँ |
मेरे काम  सब ही निबट रहे कोई  काम  भी  तो  रुका  नहीं ||

मुझे  डस   रहीं   वो   आज   भी  मेरी  गुर्बतें  एक  सांप  सी |
मैं अना पे अपनी अड़ा रहा  कभी  उनके  आगे  झुका  नहीं ||

मेरी धडकनों पे वो  छा  गई  किसी  ख़ूबरू   रूह  की   तरह |
नहीं नाम का नहीं शहर का मुझे   आज  ‘सैनी ’ पता  नहीं ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी    
      

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