दिल-ए -बीमार की हालत कभी तो देख लो आ कर |
पुकारा है बड़ी शिद्दत से उसने आज पछता कर ||
तुम्हारी अहमियत कितनी हमारा दिल समझता है |
ज़रा फ़ुर्सत में इसको सोचियेगा आज घर जा कर ||
हमारी हद हमें मालूम है फिर डींग क्यूँ हांके |
फ़लक़ से तोड़ कर देंगे न तारे आपको ला कर ||
न गोली से,न खंजर से,न डर लगता मिसाइल से |
हमें डर उससे है जो लूटता है प्या र दिखला कर ||
कमी उसने नहीं छोडी मुझे बरबाद करने में |
कभी लालच से फुसलाकर कभी बातों से बहका कर ||
अगर खैरात वो देंगे तो होगी शर्त ये पहली |
बड़ा सा बोर्ड टंगवा दो उन्ही का नाम लिखवा कर ||
ज़रा ‘सैनी’ से जाकर पूछिए क्यूँ है परेशाँ वो |
हुआ है ज़ाफ़रानी सा बदन क्योंकर ये कुम्हला कर ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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