Sunday, 8 April 2012

दिल-ए -बीमार


दिल-ए -बीमार की हालत कभी  तो देख लो आ कर |
पुकारा है बड़ी शिद्दत  से  उसने  आज   पछता  कर ||

 तुम्हारी अहमियत कितनी हमारा दिल समझता है |
ज़रा फ़ुर्सत में इसको सोचियेगा  आज घर  जा  कर ||

हमारी   हद   हमें   मालूम   है  फिर  डींग  क्यूँ हांके |
 फ़लक़ से तोड़ कर  देंगे  न  तारे  आपको  ला   कर ||

न  गोली से,न खंजर से,न  डर लगता  मिसाइल   से |
हमें डर उससे  है  जो  लूटता  है  प्या र दिखला  कर ||

कमी  उसने  नहीं    छोडी   मुझे   बरबाद    करने  में |
कभी लालच से फुसलाकर कभी बातों से बहका  कर || 

अगर    खैरात     वो    देंगे  तो   होगी शर्त  ये  पहली |
बड़ा  सा  बोर्ड  टंगवा  दो उन्ही का नाम लिखवा  कर ||

ज़रा  ‘सैनी’ से  जाकर   पूछिए   क्यूँ   है  परेशाँ   वो |
हुआ है ज़ाफ़रानी सा बदन क्योंकर ये कुम्हला  कर ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

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