नहीं चाहत रही कोई कभी इनआम पाने की |
मेरी ख़्वाहिश रही दुन्या को बस खुशियाँ लुटाने की ||
लहू जलता रहा मेरा क़लम चलता रहा मेरा |
नहीं परवाह की मैंने कभी खाने - कमाने की ||
तुम्हारे प्यार के आगे नहीं टिकती कोई दौलत |
हज़ारों बार झेली ज़िल्लतें मैंने ज़माने की ||
नज़र आये ज़बीं पर देख लीजे प्यार कितना है |
ज़रूरत ही नहीं पड़ती मुझे इसको बताने की ||
मुझे जो प्यार करते हैं सलामत वो रहें सारे |
उन्ही से मिलती है ताक़त मुझे लिखने -लिखाने की ||
कहें अच्छा ,पढ़े अच्छा ये सबका फ़र्ज़ बनता है |
सभी की ज़िम्मेदारी है ये नस्लों को सिखाने की ||
बड़ी ही तंगदस्ती में रहा है आज तक ‘सैनी’|
जगह क्या ईंट इक हासिल नहीं है आशियाने की ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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