Tuesday, 28 August 2012

साफ़ नीयत


साफ़   सुथरी   है   नीयत    अगर |
हमसे   मिलिए  उठा  कर  नज़र ||

रोज़    सपनो    में  आता    है   तू |
आ    ज़रा    सामने     बात   कर ||

पहले    आने    का   वादा     करो |
तब   ही   सो   पाऊंगा   रात  भर ||

तेरी    ज़ुल्फ़ों    में   मैं      क़ैद  हूँ |
जाऊंगा    भी   कहाँ   भाग    कर ||

प्यार   माना    कि   तुझसे   हुआ |
एक    दुश्मन    बढ़ा    है    मगर ||

आप   पर   क्या   निछावर   करूँ |
दिल भी नकली है नकली जिगर ||

बदनसीबी     न    टाले        टले |     
दौडियेगा      इधर     से     उधर ||

ज़ुर्म  दुनिया  में  कर   चाहे  तू |
दोस्ती  में  न    पर  घात   कर ||

लड़ते -लड़ते   वो   थकते  नहीं |
प्यार  करते   हैं पर  मुख़्तसर ||

मुझको    ले   डूबेगी   सादगी |
मुझको   एसी  नहीं थी ख़बर ||

ग़म के आँसूं पिए  किस तरह |
सीख  ‘सैनी ’ से  तू  भी  हुनर ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी   
       

Thursday, 23 August 2012

आग का दरिया


दरिया  हूँ  मैं  इक  आग  का  जो  कि मुद्दतों से बुझा नहीं |
जो समझ सके मेरे दर्द को कोई आज तक तो मिला नहीं ||

वो  गुनाह  करके  बचे  रहे मुझे बिन किये ही सज़ा मिली |
वो  अजीब  सा  इजलास  था  जहाँ  मुद्दई  को  सुना  नहीं ||  

किया एक तरफ़ा ही फ़ैसला मुझे  छोड़  कर  वो  चले  गए |
क्यूँ  ख़फ़ा हुए क्या ख़ता हुई मुझे आज तक भी पता नहीं ||

ग़म-ए-आशिक़ी ने मिटा दिया जो वजूद कुछ था बचा हुआ |
मैं वो सूखता हुआ पेड़  हूँ   किसी  ने  भी  पानी  दिया  नहीं || 

ये चराग़  कैसे जलाऊं मैं नहीं  जानता मैं  ये इल्म-ओ-फ़न |
मैं   तो  तीरगी  में  पला बड़ा  मुझे   रोशनी  का   पता नहीं ||

वो मुझे लिखें मैं उन्हें लिखूं कभी ख़त लिखा था ये सोच कर |  
मेरी  उम्र  सारी  निकल  गई  वो  जवाब  उसने  दिया  नहीं || 

जो मिला उसी में  मैं  ख़ुश  रहा  मैं  ख़ुदा  का  शुक्रगुज़ार हूँ |
मेरे काम  सब ही निबट रहे कोई  काम  भी  तो  रुका  नहीं ||

मुझे  डस   रहीं   वो   आज   भी  मेरी  गुर्बतें  एक  सांप  सी |
मैं अना पे अपनी अड़ा रहा  कभी  उनके  आगे  झुका  नहीं ||

मेरी धडकनों पे वो  छा  गई  किसी  ख़ूबरू   रूह  की   तरह |
नहीं नाम का नहीं शहर का मुझे   आज  ‘सैनी ’ पता  नहीं ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी    
      

Tuesday, 14 August 2012

ख़ुदा के फ़ैसले


जो   मिला   ज़िंदगी   में   उसे   लीजिये   फ़ैसले   उस ख़ुदा    के  बदलते   नहीं |
लाख   कोशिश   करो   तोड़ने   की   इन्हें   ये   सितारे   ज़मीं  पे   बरसते  नहीं ||

आप     रोते     रहो     गिडगिडाते     रहो    रोज़    ढेरो    चढ़ावा    चढाते    रहो |
ये हैं पत्थर के बुत इनकी फ़ितरत यही कितनी करलो परस्तिश पिघंलते नहीं ||

जब भी  की  बात  उनसे  तो  ये  ही  सूना  आज  फ़ुर्सत नहीं फिर कभी  आइये |
और   हम  पे  ये  इल्ज़ाम   लगता   रहा  हम ही  उनसे कभी बात   करते  नहीं ||

तेरे   आने   से   इक   रोशनी    सी   हुई   दूर   घर   की   मेरे   तीरगी  हो  गयी |
वर्ना   बैठे   थे   हम   तो  तसल्ली  किये  आँधियों  में  कभी   दीप जलते  नहीं ||

साथ रहता है साया बशर के सदा वक़्त  कैसा  भी  मुश्किल  कहीं  पर  भी   हो |
दो  क़दम  चल के  कह  देते  हैं  अलविदा  दूर  तक सब सदा साथ  चलते नहीं ||

आज तक हमने जो भी कहा ए सनम सब तुम्हारे   लिए   बस   तुम्हारे  लिए |
जिक्र  तेरे  फ़साने  का  जिनमें  न  हो  हम  कभी  इसे अलफ़ाज़ लिखते नहीं ||

ज़हर पी लेगा जितना पिलाओगे तुम उसके  माथे  पे  होगी  न   कोई  शिकन |
बोल  ‘सैनी ’ को  मीठे  मगर  बोलना  उसको  कडुए  कभी  बोल   पचते  नहीं ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी 

Sunday, 5 August 2012

चांदनी का सफ़र


आप  बन कर चले जब  मेरे हमसफ़र |
लो  शुरू  हो  गया   चांदनी  का  सफ़र ||

मेरी  आँखों  में  हैं  इक अनोखी चमक |
साथ  है  जो  मेरे  आप  सा   हमसफ़र ||

ये   ज़रूरी   नहीं   आज   ही   तू   मिले |
राह   देखूंगा   मैं   तो    तेरी   उम्र   भर ||

वक़्त थोड़ा सा मेरे भी लिए तो  निकाल |
वक़्त पर काम कर वक़्त पर प्यार कर ||

पार    करले    ये   काँटों   भरा    रास्ता |
बाद   इसके   है  फूलों   भरी   वो  डगर ||

इश्क़   में  मुब्तिला  जब  से  तेरे  हुआ |
दुन्यादारी  में बिल्कुल हुआ मैं  सिफ़र ||

तुझसे  रुसवा हुआ  तो   ये   हालत  हुई |
इस  तरफ़ है  कुआ  तो   है  खाई  उधर ||

क्यूँ  ग़रूर   इतना  है  ये  बता  तो  सही |
रिश्ते    नाते   सभी  रख दिये  ताक़ पर ||

है   बिना  प्यार   के  बोझ   ये    ज़िंदगी  |
जिसको ढोता फिरे ‘सैनी’शाम-ओ-सहर ||

डा ० सुरेन्द्र  सैनी      



Thursday, 2 August 2012

मक़ाम आ गया


दोस्ती  में  ये  कैसा  मक़ाम  आ  गया |
दुश्मनों  में  हमारा भी  नाम आ  गया ||

एसा सर पर चढ़ा है  जनून -ए  -जिहाद |
आज सड़कों पे सारा  अवाम  आ  गया ||

वो    हुए    थे    ख़फ़ा   मुदत्तें   हो   गयीं |
ईद पर फिर भी उनका सलाम आ गया ||

उनको  देखा  तो  नज़रें ये  कहने  लगी |
हुस्न का आज सारा निजाम  आ  गया ||

थक    गयी    दौडती   भागती   ज़िंदगी |
ज़िंदगी के सफ़र का  क़याम  आ  गया ||

वो अयादत कोआये  न  आये  तो  क्या |
पास   मेरे   महल्ला  तमाम   आ  गया ||

बच   के   रहना   हसीनो  ज़रा  शहर  में |
एक पागल सा आशिक़ अनाम आ गया ||

तेरी  महफ़िल में तलछट ही मिलती रही |
क्या  करिश्मा  हुआ आज जाम  आ गया ||

जानता    था    यहाँ    लोग    हैं     बेशऊर | 
फिर  भी  ‘सैनी’ तू  पढने कलाम आ गया ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी